......इन तनहा-तनहा रातों में

ना जाने कितना रोया हूँ  ,
इन तनहा - तनहा रातो में । 
ना जाने कब से खोया हूँ ,
तेरी प्यारी -प्यारी बातों  में ।।

ना जाने कब से रोग मुझे ,
चोरी से आकर लगा गयी ।
ना जाने कब सोती आँखों से ,
मेरी निंदिया चुरा गयी ।। 

पहले तो सोता था रातों में,
ना डूबा रहता था ख्वाबों में । 
ना मैं कभी घूमने गया कभी ,
था इसके पहले बागों में ।।

                                         आशीष पाण्डेय "देव"


                                                               आगे पढ़ाने के लिए थोड़ा इंतज़ार करें .........


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