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Showing posts from April, 2012

एक सुमन का सवाल ...

खिलता हूँ मै तो तुम,  खिलने न देते,  बढ़ने हूँ मै तो तुम, बढ़ने ना देते, कैसे हो मानव ? ना  बढ़ने हो तुम, और ना हमें  बढ़ने देते, लगाने का शौक गर, नहीं पलते तो, तोड़ने का हमको ,  शौक क्यों पलते हो? कैसे हो मानव? जो ना सजाते हो दामन, और सजाते है हम तो, ज़हर डालते हो, जब थे हम छोटे-छोटे,  तो जगह से जगह बदल दिया,  जब फूल लगे हममे छोटे , तो चुटकी से पकड़ कर मसल दिया, कैसे हो मानव? जब सही राह ना पकड़ सका तो , बुरा मार्ग ही पकड़ लिया. भगवान समझकर मानव को, मेरी माला पहनते हो, जो क्षड़ भर बीत गया तो,  पैरों के तले दबाते हो  कैसे ही मानव? जो एक नाचीज को इज्जत देकरके, हमारी इज्जत को गवाते हो ! तू देख जरा मधुमक्खी को, वो फूलों-फूलों मडराती है,  चूस-चूस के फूलों के रस, वो मीठा मीठानाती है,  कैसे हो मानव? जो खुद  की  जान बचने को,  दूसरो की बली चढ़ाते हो !                                          आशीष कुमार पाण्डेय 'देव'    

सच्ची ज़िंदगी

फूलों की कली है ज़िन्दगी,  ओसों की नमी है ज़िंदगी,  अपनों की कमी है ज़िन्दगी,  अम्बर और ज़मीं है ज़िन्दगी !                                 दुःख में ख़ुशी रहना है ज़िन्दगी,                                 आंसू छिपाकर हँसना है ज़िन्दगी,                                 खुद भूखा रहकर पेट भरना है ज़िन्दगी,                                  दुःख भुलाकर प्रेम भेट करना है ज़िन्दगी ! नहीं है ज़िन्दगी ------ मुश्किल में रोते रहना, सुख में सोते रहना,  मंजिल को खोते रहना , डोर जीवन की तोड़ते रहना !                                   मुश्किल में हर पल मुश्कुराना है ज़िन्दगी,                                   सुख में दुखियों को हँसाना है ज़िन्दगी,                                   मंजिल को पाकर भी बढ़ते जाना है ज़िन्दगी,                                      निराशा को आशा बनाना है ज़िन्दगी ! ना बुरा करो ना करने दो, ना तुम हारो ना हरने दो, ना तनहा रहो ना रहने दो,  सबका साथ निभाते रहना है ज़िन्दगी !                                    हँस कर गम को भुलान