एक सुमन का सवाल ...
खिलता हूँ मै तो तुम, खिलने न देते, बढ़ने हूँ मै तो तुम, बढ़ने ना देते, कैसे हो मानव ? ना बढ़ने हो तुम, और ना हमें बढ़ने देते, लगाने का शौक गर, नहीं पलते तो, तोड़ने का हमको , शौक क्यों पलते हो? कैसे हो मानव? जो ना सजाते हो दामन, और सजाते है हम तो, ज़हर डालते हो, जब थे हम छोटे-छोटे, तो जगह से जगह बदल दिया, जब फूल लगे हममे छोटे , तो चुटकी से पकड़ कर मसल दिया, कैसे हो मानव? जब सही राह ना पकड़ सका तो , बुरा मार्ग ही पकड़ लिया. भगवान समझकर मानव को, मेरी माला पहनते हो, जो क्षड़ भर बीत गया तो, पैरों के तले दबाते हो कैसे ही मानव? जो एक नाचीज को इज्जत देकरके, हमारी इज्जत को गवाते हो ! तू देख जरा मधुमक्खी को, वो फूलों-फूलों मडराती है, चूस-चूस के फूलों के रस, वो मीठा मीठानाती है, कैसे हो मानव? जो खुद की जान बचने को, दूसरो की बली चढ़ाते हो ! आशीष कुमार पाण्डेय 'देव'