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Showing posts from November, 2011

शराब "कलयुग का अमृत"

इश्वर से भेंट कराने की, उच्चारण शुद्ध करने की, की दुनिया में नाम बढ़ाने की, यह दवा है एक ऐसी जनाब...                             जिसका नाम रखा हमने शराब... आलस्य को दूर भगाती है, दो बिछड़े दिलों को मिलाती है, ये दुःख की घड़ी को भुलाती है, सुख की गठरी है ये जनाब...                            जिसका नाम रखा हमने शराब... सुन्दर सी कली है ये शराब, महलों की परी है ये शराब, अम्बर से गिरी है ये शराब, धरती पे पली है ये जनाब.....                          जिसका नाम रखा हमने शराब... आँखों की ज्योति बढ़ाती है, चंचल काया को बनाती है, दो युगल प्रेमियों को मिलाती है, जीनें का मजा देती है जनाब...                        जिसका नाम रखा हमने शराब.... आशा की किरणें जिससे आये, फूलों की तरह जो मन भाए, समय की तरह जो चलती जाए,  ये ऐसा सीरप है जनाब...                        जिसका नाम रखा हमने शराब...  क्या करें आज की अब चिंता, क्या करें भविष्य की आशा,  जब लोग हमें ठुकरा ही दिए,  तो फिर क्या आशा, क्या निराशा? मैं चिंता की चिता जलाता हूँ, मैं मुरझाये फूल खिलाता हूँ, जिस चेहरे पर आंसू आ

मन का लहर

एक दिन एक दीवाने ने, पूछा अपनी दीवानी से, क्यों देख मुझे सब दीवाने, करते पसंद दूर चला जाने, क्यों देख मुझे सब जलतें हैं, गुस्से से दामन भरते हैं, क्यों नफ़रत है इतना मुझसे , है प्यार उनको जितना तुमसे, तब हंस कर दीवानी बोली, दिल का अपने आँचल खोली, दिल प्रेम हस्त से सहलाया, उसको जबाब फिर बतलाया, तुममें है इतनी गर्मी, देखने से तुम्हे न आती नर्मी, फिर पूरा बदन पिघलता है, अन्दर-अन्दर दिल जलता है, और मैं हूँ बर्फों की झिल्ली, एक शीतल प्रेम रस की झिल्ली, दिल देखकर के शीतल होता, और मन में प्रेम बीज बोता, पाने की सबको आकान्छा होती , सोचे गर पास मेरे होती, जुल्फों की छांव में सो जाता, जीवन भर शीतल हो जाता,                                            --------     आशीष पाण्डेय "देव"