शराब "कलयुग का अमृत"
इश्वर से भेंट कराने की, उच्चारण शुद्ध करने की, की दुनिया में नाम बढ़ाने की, यह दवा है एक ऐसी जनाब... जिसका नाम रखा हमने शराब... आलस्य को दूर भगाती है, दो बिछड़े दिलों को मिलाती है, ये दुःख की घड़ी को भुलाती है, सुख की गठरी है ये जनाब... जिसका नाम रखा हमने शराब... सुन्दर सी कली है ये शराब, महलों की परी है ये शराब, अम्बर से गिरी है ये शराब, धरती पे पली है ये जनाब..... जिसका नाम रखा हमने शराब... आँखों की ज्योति बढ़ाती है, चंचल काया को बनाती है, दो युगल प्रेमियों को मिलाती है, जीनें का मजा देती है जनाब... जिसका नाम रखा हमने शराब.... आशा की किरणें जिससे आये, फूलों की तरह जो मन भाए, समय की तरह जो चलती जाए, ये ऐसा सीरप है जनाब... जिसका नाम रखा हमने शराब... क्या करें आज की अब चिंता, क्या करें भविष्य की आशा, जब लोग हमें ठुकरा ही दिए, तो फिर क्या आशा, क्या निराशा? मैं चिंता की चिता जलाता हूँ, मैं मुरझाये फूल खिलाता हूँ, जिस चेहरे पर आंसू आ