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उल्टी गंगा...

कल का भविष्य ऐसा होगा, सब वेद ग्रन्थ पैसा होगा  तब संतों की दुरगति होगी , औ लुच्चो की इज्जत होगी  सब पाप रीती अपनाएंगे, धर्म रीती को हटाएँगे वो पाप का खेला खेलेंगे, औ धर्म की इज्जत लूटेंगे अबला हो जाएगी बला, पुरुषों का करेगी हला-भला  लातों से बात करेंगी वो , पुरुषों  को  न जीने देंगी वो  औरतें रहेंगी ऑफिस में, पुरुष भोजन पकाएगा  थकी हुई लुगाई का,  रात में पैर भी दबाएगा   जो बुरी नज़र पुरुषों की हो, तो आंख उनकी फोड़ेंगी वो  जो गलत किया थोडा सा भी तो, हाँथ - पांव तोड़ेंगी वो  कशी-प्रयाग का नाम न होगा, घर का नाला संगम होगा  अध्ययन करेंगे अध्यापक, छात्रों से अध्यापन होगा  जिसको खुद का भी ज्ञान नहीं, वो होगा तपश्वी सन्यासी  जिसको यथार्थ का ज्ञान सही, वो होगा पापी सत्यानाशी  जब पाप देश में सना होगा, दुर्गति का भी दुर्गति होता होगा  जब सागर का पाप गहना होगा, तब मजबूरन हमें उल्टी गंगा  कहना होगा !!                                                                                                      आशीष पाण्डेय "देव"

कल का कलयुग

यह कथा नहीं एक सत्य कथा है , आने वाले कलयुग का नाम मिटा देने वाली , उस सतयुग के स्वर्ण सुख का  आयेगी ऐसी बयार, मिट जाएगा सब नामों निशान  सब वेद ग्रन्थ मिट जायेगा, बन जाएगा पापों का एक मिसाल  जब सावन में बारिश होगी, उसमें आगों की नमी होगी  ये धर्म नगरी जलती होगी, चरों तरफ आग-आग होगी कुछ दिन में प्रलय आ जायेगा, यम का काला  बादल छाएगा  ये विश्व धरा मिट जाएगी और अंगारे-अंगारों को खायेंगी                                                                    आशीष कुमार पाण्डेय  "देव"