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Showing posts from January, 2011

दास्ताँ आजादी के पहले की

पक्षी ना दाना खाती थी , कोयल भी गीत ना गाती थी , गोरे इतने थे तडपते हमें की , हम डर के मारे मर जाते थे रोटी तो दूर की बातें है, पानी के लिए तरसाते थे , थे ऐसे वे पापी इन्सान वो , भूखे हमसे खटवाते थे , ना खट पाओ तो ऊपर से , कोड़ो की वारसा करते थे, जो चोट लगे और चिल्लाओ , मुह में मिटटी भर देते थे, क्या-क्या बतलाऊ मै उनकी , सुनकर के धरा थर्राती है , आदमियों की तो बात ही नहीं , चींटी भी अश्रु बहाती है , उनका था ऐसा प्रकोप , की टिड्डे भी नहीं तब उड़ते थे, ऐसा ढाया था जुर्म उन्होंने , की मच्छर भी चुपके से रोते थे, वे होटल होम हेलीकाप्टर इत्यादि बनवाते थे , राज काज का मज़ा ले रहे सुख की नींद उड़ाते थे , हम झोपड़ पट्टी में रह कर जीवन का गुजारा करते थे , दुःख पीड़ा को याद करके हम भाग्य पर ही पछताते थे , वो ऐसा था कल हम लोंगो का , जब रोटी के लिए हम मरते थे , वे ब्रांडी बीयर पीते थे , हम पानी के बीना सो जाते थे ,                                        "आशीष पाण्डेय" 

सच्चा आशिक

इधर भी आशिक , उधर भी आशिक  जिधर देखता उधर ही आशिक  आशिक हस रहे है , वफ़ा रो रही है  ये प्रेम नगर में अब क्या हो रहा है ? ये दारू की बोतल आशिको के लिए है, ये सिगरेट और गुटखा आशिको के लिए है , ये क्लब और ये कालेज आशिको के लिए है , ये बाइक , मोबाईल आशिको के लिए है , पिलाये जा प्यारे पिलाये जा डट के , ये ब्रांडी ये बीयर आशिको के लिए है , मै दुनिया को अब भूलना चाहता हूँ , आशिको की तरह घुमाना चाहता हूँ , कुवरो की होती नहीं शादी देखो  आशिक शादी पे शादी करते हैं देखो  यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी है  ये दुनिया आशिको के लिए ही बनी है  जो गलियों में डोले वो कच्चा आशिक है  जो कालेज में बोले सच्चा आशिक है !                                                 "आशीष पाण्डेय"